कितनी अभागी होती हैं बेटियां  हर रिश्ते मैं खुद को जलाती हैं बेटियां  मइके और ससुराल की रीत के लिए  खुद को गलाती हैं बेटियां ...   माँ बाप को छोड़ कर  नया घर बसाती हैं बेटियां  एक पराई दुनिया मैं सबको अपना समझ  अपनाती हैं बेटियां  फिर भी दुनिया दबाती है उन्हें .. कितनी अभागी होती हैं बेटियां।   बीमार बूढ़े माँ बाप की  ना सेवा कर पाती हैं बेटियां  पति को भगवान्, ससुराल को मंदिर  बनाती हैं बेटियां  फिर भी बेटी की जगह बहु कहतालती हैं बेटियां   कितनी अभागी होती है बेटियां  मासूम बचपन को छोड़  ज़िम्देदारी उठती हैं बेटियां  हार हार के भी हर पल  सबके सामने मुस्कुराती हैं बेटियां .....   ना जाने कैसी दुनिया है ये  ना जाने कैसे हैं लोग  सबका कर के भी अकेली रह जाती हैं बेटियां  कितनी अभागी होती हैं बेटियां।    -  ऋचा