एक मोसम बहार है .. एक मोसम अन्दर है
आँखों मै दर्द का ... ठहरा सा समन्दर है
गुमशुदा से लम्हे , गुमशुदा सा आलम हैं
खुशनुमा से मोसम मै ..
एक तनहा अकेले हम हैं।
यादो से बस .. दो पल का रिश्ता रह गया
अलविदा लम्हों को गुजरा कल कह गया
खुदगर्जी कैसी, अश्को मै ख़ुशी का ब्रहम है
रूठी रूठी सी सुबह मेरी
एक तनहा अकेले हम हैं।
भीड़ मै .. खामोशी ने पुकारा है
टुटा सा बिखरा सा .. दिल ये तुम्हारा है
बेवजह सा, कुछ नम सा ये मोसम है
महफ़िल मै जुदा से कहीं
एक तनहा अकेले हम है।
copyright, All Rights Reserved 2013, Richa Gupta
आँखों मै दर्द का ... ठहरा सा समन्दर है
गुमशुदा से लम्हे , गुमशुदा सा आलम हैं
खुशनुमा से मोसम मै ..
एक तनहा अकेले हम हैं।
यादो से बस .. दो पल का रिश्ता रह गया
अलविदा लम्हों को गुजरा कल कह गया
खुदगर्जी कैसी, अश्को मै ख़ुशी का ब्रहम है
रूठी रूठी सी सुबह मेरी
एक तनहा अकेले हम हैं।
भीड़ मै .. खामोशी ने पुकारा है
टुटा सा बिखरा सा .. दिल ये तुम्हारा है
बेवजह सा, कुछ नम सा ये मोसम है
महफ़िल मै जुदा से कहीं
एक तनहा अकेले हम है।
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रिचा गुप्ता : बहुत बढ़िया लिखा है....
ReplyDeleteThank You Raju Ji
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